बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

एक विशेष मित्रता (अनुवाद)



कुछेक स्थान ही मैं ढूँढ पाया हूँ
जो तुमसे बात करने से अधिक आरामदायक हो।
कुछेक आवाज ही मैं सुन पाया हूँ
जो तुम्हारी आवाज से अधिक शांतिदायक हो।
कुछेक पल ही मैं महसूस कर पाया हूँ
जो तुम्हारे साथ बीते पल से अधिक सुखदायक हो
कुछेक यादें ही मैं जुटा पाया हूँ
जो हमारे बीच की यादों से अधिक प्यारे हों
कुछेक विचार ही मैं याद कर पाया हूँ
जो तुमसे पूरे तरह भरे हो
कुछेक घंटे ही मैं महसूस कर पाया हूँ
अकेलेपन के, तुमसे मिलने के बाद
मैंने खोज लिया है बेशक कि
हमारे बीच की दोस्ती हमेशा होना ही था ।। 

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

पता नहीं !


पता नहीं मैं इतना आसक्‍त हूँ क्‍यूँ तुझपर!

तुमने कभी कुछ माना नहीं

मुझे कभी अपना समझा नहीं

fफर भी मेरा दिल इतना

पागल है क्‍यूँ तुझपर?

तुमने जाना है कि

मैं तुझपर कुर्बान हूँ

तेरी एक नज़र का प्‍यासी हूँ

पिफर भी तेरा दिल इतना बेदर्द है क्‍यूँ मुझपर?

कुत्‍ता भी खेल लेता है

तेरी गोद में

अनजाने अंधे को भी

सडक पार करा देता है तेरा हाथ

मुझे वो कुत्‍ता न सही

अनजाना अंधा ही समझ लो ना

अपने हाथों का सहारा दे दो ना

मुझे भी पार करा दो ना ।।

जीवन!


मन इतना उदास क्‍यों है आज

दिल में बेचैनी छाई क्‍यों है आज

जिगर टूट सा गया क्‍यों है आज

जिस्‍म गल सा गया क्‍यों है आज

मरनेवाले तो मर गए

स्‍वर्ग या जिधर भी पहूँच गए

जीनेवाले तो रह गए

नरक में रो-रोकर बह गए

क्‍यों बना देता है जीवन

किसी को सुखी और किसी को दुखी

कुछ लोग जीकर खुश है

कुछ लोग मरकर खुश

जीवन मरण का क्‍या यह नियम है

कि कोई मरता हो रोता है

और कोई जीता तो ।।

और एक मीरा थी



सोचती रहती उसके बारे में मैं
सपना देखती रहती दिन में भी
जागती हूँ उसके साथ
सोती हूँ उसके साथ
बाते करती रहती मन में मैं
क्‍या रिश्‍ता है यह
कब बना
कैसे बना
कुछ पता नहीं।
बस, बन गया है वह अंग
मेरे जीवन का, मेरी सांसों का
घबराता है दिल
यह सोचने को कि
कभी टूट भी सकता है
यह रिश्‍ता प्‍यार का
स्‍तब्‍ध हो जाती है तब श्‍वास
जीने की इच्‍छा मर जाती है
पर
यह टूट कैसे सकता है कभी?
तोडेगा कौन इसे ?
समाज?!
वो क्‍या जाने मेरे मन की बात :)
मेरा प्रियतम ?!
उसको भी तो एहसास नहीं:)
पिफर टूटने का डर कैसा ?
ग्‍लानी क्‍यों?
जब तक रहे ये दिल
रहेगा मेरा प्‍यार, मेरा प्रियतम 
श्‍वास छूट जाएगी, पर
किसीको पता भी न चलेगा
एक और भी कोई मीरा थी ।।

जियो और जीने दो


पतझड में गिरते लाखों-हजारों पत्ते पेड से

पर रोते नहीं हैं पेड, ही गिरते पत्ते !

पता है उनको कि ये नियम है पावन प्रकृति का ।

इसे तोडना या मोडना उनके बस में है नहीं

मानव है कि समझता अपने को सर्वशक्तिमान

लेकिन समझ पाता नहीं ये प्रकृति के विधान

इसलिए तोडता है, मोडता है उसके नियम

जिसका फल भोगना पड़ता है, केवल उसको नहीं

बल्कि प्रकृति के हरेक जीव-जंतु को

इतना तक कि मानव की भावी पीढियों को भी ।

यह जानते हुए भी

वह रोक नहीं पाता है अपने को

क्योंकि

स्वार्थ ने बना दिया है उसे अंधा

गर्व ने बना दिया हे उसे क्रूर

लोभ ने बना दिया है उसे बेबस

हे मानव! अब तो जाग उठो !

अपना अंधापन,

अपनी बेबसी और

अपने क्रूरता के पर्दे फाडो

देखो दुनिया को मानव बनकर

करो दुनिया के लिए कुछ अच्छे काम

ताकि दुनिया में रहे तेरा नाम हर धाम ।।

जीने का तरीका


क्यों कहें कि संसार बुरा है ?

क्या हम भी अंग नहीं इस संसार के ?

क्यों पडे इस बहस में कि ?

आप बुरे हैं या हम बुरे हैं

जीने आए हैं इस संसार में

जीके ही मरना है सबको, तो

क्यों बने एक भला मानुष ?

क्यों जिए एक बेहतरीन जीवन ?

क्यों छोडें अपनी अच्छी छाप ?

क्यों कहें कुछ मीठे वचन ?

क्यों करें कुछ नेक करम ?

चलिए सोचें, विचारें, शुरू करें जीवन

पथ-प्रदर्शक का सही पर

पथ-भ्रष्ट का कभी नहीं ।।